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भारतपारीय-भारत अध्ययन

अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा भारतपारीय-भारत अध्ययन केन्द्र की स्थापना उन भारतवंशी समुदायों के अध्ययन को ध्यान में रखकर की गई है जो विगत हजार वर्षों से विभिन्न कारणों से भारत के बाहर अन्य देशों में जाकर बस गए हैं। । सामान्यतः भारतपारीय-भारत अध्ययन केन्द्र के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • भारतवंशियों द्वारा उनके गृहदेश में किए गए योगदान का अध्ययन करना।
  • उनके गृहदेश एवं भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, पांथिक परम्पराओं का अध्ययन कर आपस में निकटता लाने का प्रयास करना।
  • ऐसे देश जो कभी भारत के ही अंग थे, कैसे भारत से अलग हुए आज उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं में क्या परिवर्तन हुए और किस प्रकार उनकी भारत से निकटता बढ़ सकती है। उन तथ्यों का अध्ययन करना।
  • इस तरह के कार्य में लगी उनके गृहदेश तथा भारत की संस्थाओं से सहयोग बढ़ाना।

इस केन्द्र का लक्ष्य भारत से बाहर गए सभी भाषा-भाषी समूहों का व्यावसायिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षणिक अन्तर-अनुशासनिक अध्ययन है। इस केन्द्र का उद्देश्य इन जनसंख्याओं को अपने मूलदेश की सांस्कृतिक और सामाजिक मुख्यधारा से जोड़ना है, जिससे वे अपने वर्तमान गृह-देश में अपने कार्य-कौशल और जीवन से अपने मूलदेश के प्रति सद्भावना अर्जित कर सकें और वे अपनी उपयोगिता से अपने वर्तमान गृहदेश के समाज में अपनी जगह बना सकें। उन्हें यह ध्यान रहे कि उनके पूर्वजों ने अपने श्रम और तप से ही दुनिया में अपनी पहचान और जगह बनाई थी।

हम उन्हें ‘डायस्पोरा’ नहीं समझते वे अपने मूल से बिखरे या शाख से टूटे-छूटे ‘डायस्पोर’ नहीं है- ‘‘डायस्पोर’’ एक निर्लिप्त, ऊष्माहीन, निर्जीव शब्द है। हम इस शब्द को उनके लिए स्वीकार नहीं कर सकते, जिनका हमसे रक्त और संस्कृति का संबंध है।

जहां तक भारत का प्रश्न है वह इन जनसंख्याओं को उनके मूलदेश की प्रकृति और संस्कृति से जोड़े रखना चाहेगा। वह उनकी व्यापार और शिक्षा में सहायता कर सकता है।

अपने ‘स्पर्श’ कार्यक्रम के अंतर्गत हमारे अध्ययनों के विषय ऐसे होंगे, जो प्रवासी जनसंख्याओं को, विशेषकर उनकी नई पीढ़ी को भारत की सांस्कृतिक विविधता और सर्जक परम्पराओं का परिचय दे सकें और वे अपने वर्तमान गृह-देशों में भारत की संस्कृति का सही रूप में प्रतिनिधित्व कर सकें।

हम दृश्य-श्रव्य माध्यमों से उन्हें भारत के साथ जोड़ेंगे जिससे वह अपने गृह-देश में रहकर भी अपने पूर्वजों की भूमि से जुड़े रहें और उनकी नई पीढ़ियाँ विश्व में फैले वैचारिक बिखराव की शिकार न बनें।

भारत में समग्रता के सनातन-सूत्र समाजों के बीच बिखराव के स्थान पर समन्वय, समरसता, आपसी-समझ और संतुलन के सिद्धांत हैं। आज भी इनकी पहले के समान ही ज़रूरत है। ये सिद्धांत सनातन हैं।

विश्वविद्यालय एक ऐसी नियतकालिक पत्रिका का प्रकाशन करेगा, जिसमें भारत-पारीय भारतवंशी लेखक और उनके बच्चे अपनी रचनाएं प्रकाशित कर अच्छी समीक्षा पा सकें और इस प्रकार विश्व के लेखन जगत में अपना स्थान बना सकें। साहित्य, समाज का दर्पण ही नहीं, दृष्टि भी होता है, हम चाहेंगे कि विश्व का सम्पूर्ण भारतवंश अपनी और विश्व की समस्याओं के लिए इसे अपने सांझे विमर्श का माध्यम बनाए।

शीघ्र ही विश्वविद्यालय एक सम्पर्क कक्ष इस केन्द्र की स्थापना के साथ ही बनाएगा जिससे भारतवंशी दुनिया में कहीं भी हों, शिक्षा सुविधाओं के लिए भारतीय शिक्षा-तंत्र से जुड़ सकें।

हम अपने भारतवंशी समुदाय की सामान्य पर्यटकों में गणना नहीं करते, हम उनकी असुविधाओं का अध्ययन करेंगे जो उनके भारत आगमन पर उठानी पड़ती है। वे हमारे पारिवारिक अतिथि हैं। । हम चाहेंगे कि वे होटलों के स्थान पर परिवारों में ठहरें और इस प्रकार भारत में रहकर वे भारतीय घरों में पारिवारिकता, प्रेम, आतिथ्य और अपनेपन का स्पर्श अनुभव कर सकें, जो होटल संस्कृति में संभव नहीं होता।

हम भारतवासियों द्वारा लिखित उन प्रकाशनों का स्वागत करेंगे, जो उन्होंने अपने देश के संबंध में लिखे हों।

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