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विश्वविद्यालय का विस्तृत परिचय

अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना १९ दिसम्बर २०११ को मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक - ३४, सन् २०११ के द्वारा की गयी। यह अधिनियम २१ दिसम्बर २०११ से प्रभावशील माना गया है। विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य हिन्दीभाषा को अध्यापन, प्रशिक्षण, ज्ञान की वृद्धि और प्रसार के लिए तथा विज्ञान, साहित्य, कला और अन्य विधाओं में उच्चस्तरीय गवेषणा के लिए शिक्षण का माध्यम बनाना है।

माननीय अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म २५ दिसम्बर,१९२५ को उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर शिंदे की छावनी, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में हुआ। माननीय अटल जी की स्नातक तक की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई महाविद्यालय) में हुई। कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर रहकर एल.एल.बी. का अध्ययन प्रारम्भ किया, जिसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा के साथ सामाजिक कार्य में जुट गये। आप राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में छात्र-जीवन से ही भाग लेते रहे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलतापूर्वक किया। एक कुशल एवं सशक्त सम्पादक के रूप में माननीय अटल जी को प्रतिभा सर्वमान्य एवं सर्वव्यापी प्रसिद्ध हुई। माननीय अटल जी में कवित्व के गुण वंशानुगत प्राप्त हुए। वे हिन्दी के सिद्ध कवि के रूप में प्रख्यात हैं। ‘‘मेरी ५१ कविताएँ’’ अटल जी का प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। राजनीति के साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता उनकी कविताओं में प्रकट होती रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी ।

अटल जी का राजनैतिक जीवन भारतीय जनसंघ की स्थापना से प्रारम्भ होता है। सन् १९६८ से १९७३ तक वे इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन् १९५७ में बलरामपुर (उत्तरप्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर प्रथम बार लोकसभा में पहुँचे। १९५७ से १९७७ तक जनसंघ संसदीय दल के नेता रहे। उन्होंने १९७७ से लेकर १९७९ तक भारतीय विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। अटल जी पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया। लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत संघ के ग्यारहवें प्रधानमंत्री के रूप में १६ मई १९९६ में देश की बागडोर संभाली।

अटल जी ने गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में पाँच वर्षों का कार्यकाल पूर्ण किया। अटल जी ने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था और उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। एक ओजस्वी वक्ता के रूप में परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की नाराजगी से बिना विचलित हुए उन्होंने अग्नि-२ और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए साहसिक कदम भी उठाए। इनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा गुण उनकी सरलता है जिससे उनके जीवन में कहीं भी कोई व्यक्तिगत विरोधाभास नहीं दिखता। मित्रों के साथ विरोधियों में भी अटल जी समान रूप से लोकप्रिय हैं।

माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान ने जब दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया तभी से उनकी सरकार प्रदेश में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना करने का स्वप्न देखने लगी तथा उसका नामकरण संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी की आवाज बुलंद करने वाले अप्रतिम वक्ता, कवि और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर करने का निश्चय किया। 02 दिसम्बर, 2011 मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए वह ऐतिहासिक दिन था जिस दिन उसने सर्वानुमति से अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय विधेयक पर हस्ताक्षर कर विश्वविद्यालय अधिनियम को स्वीकृति प्रदान की। 19 दिसम्बर, 2011 को मध्यप्रदेश राजपत्र (असाधारण) मध्यप्रदेश अधिनियम क्र. 34, सन् 2011 द्वारा गजट में प्रकाशन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तथा यह अधिनियम 21 दिसम्बर, 2011 से प्रभावी माना गया।

विश्वविद्यालय एक ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण करना चाहता है जो समग्र व्यक्तित्व के विकास के साथ रोजगार-कौशल व चारित्रिक-दृष्टि से विश्वस्तरीय हो। विश्वविद्यालय ऐसी शैक्षिक-व्यवस्था का सृजन करना चाहता है जो भारतीय ज्ञान परम्परा तथा आधुनिक ज्ञान में समन्वय करते हुए छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में ऐसी सोच विकसित कर सके जो भारत केन्द्रित होकर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण को प्राथमिकता देने में समर्थ हो।

अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय देश में अपने ही प्रकार का एक विशेष विश्वविद्यालय है। इसकी विशेषता इस प्रकार से परिलक्षित होती है कि यह कला, समाज विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी, विज्ञान, चिकित्सा, अभियांत्रिकी, विधि, शिक्षा एवं अन्य आधुनिक दृष्टिकोण के पाठ्यक्रमों का संचालन हिंदी भाषा के ही माध्यम से करेगा। यह पहल निश्चय ही सम्पूर्ण हिंदी प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।

यह भारत सहित सम्पूर्ण विश्व का पहला विश्वविद्यालय है, जो ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं के शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रकाश-विस्तार तथा राष्ट्रीय लोकव्यवहार को हिंदी भाषा में संभव तथा सम्पन्न करने के लिए संकल्पित है। इसीलिए इसका दायित्व जहाँ युग-प्रवर्तक का है, वहीं दायित्व की गहनता-गम्भीरता तथा व्यापकता के लिए अपेक्षित विराट-संसाधन, वैश्विक-सहयोग द्वारा ही संभव है, जो कि राष्ट्रीय शासन के स्तर पर पहल द्वारा ही हो सकेगा। अभी तो मध्यप्रदेश शासन ने अपने स्तर पर इस अनन्य विश्वविद्यालय की स्थापना की पहल की है। यह विश्वविद्यालय समग्र-दृष्टि के अनुरूप शनैः-शनैः विकसित होगा।

इसकी सफलता से राष्ट्र की कर्त्तव्यनिष्ठ समस्त सरकारें प्रेरणा लेंगी और ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं में भारतीय भाषाओं के माध्यम से उच्चतम शिक्षा प्रदान करने का कर्त्तव्य निभाएंगी, यह विश्वास है। हिंदी विश्वविद्यालय की परिकल्पना ऐसे विश्वस्तरीय मानकों के निर्माण करने की है जिनके आधार पर हमारे शिक्षकों में भी गुणात्मक अध्ययन-अध्यापन एवं शोध की क्षमता में निरंतर वृद्धि हो सके। यहाँ शिक्षण और प्रशिक्षण की ऐसी प्रविधियों की संरचना हो, जिससे गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर व्यावहारिक निपुणताओं को आगे बढ़ाया जा सके तथा योजनाबद्ध शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रदर्शन की अत्याधुनिक प्रविधियों, संग्रहण, सर्वेक्षण, अभिलेखीकरण, श्रेष्ठ-भाषाविदों के सान्निध्य एवं सहयोग से मार्गदर्शन कर सकें। परंपरागत एवं आधुनिक ज्ञान का पुस्तकालय इस तरह से विकसित हो कि भाषा की शास्त्रीयता की रक्षा के साथ, दृश्य तथा श्रव्य सामग्री विकसित की जा सकें। हिंदी सहित समस्त भारतीय भाषाओं को उनकी प्रामाणिकता और बौद्धिक क्षमता तथा उसमें निहित आध्यात्मिक बोध के जरिए एक सूत्र में इस तरह पिरोया जाए कि विरासत का ज्ञान विद्यार्थियों को हो सके और उसमें लगातार प्रयोग तथा परिशोध का काम भी होता रहे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान इस तरह बने कि जहाँ सभी भाषाओं के श्रेष्ठ ज्ञान को हिंदी भाषा में अनुवादित कर उसका प्रचार-प्रसार किया जा सके।

विश्वविद्यालय एक ऐसी अनूठी पहल के रूप में देश-विदेश के सामने आए, जिससे भारत की अनोखी सांस्कृतिक विरासत और लगातार हजारों वर्षों से संपोषित एवं सृजनरत संस्थाओं को पुनर्जीवित कर उनके मूलपाठ को वर्तमान संदर्भों में दुनिया के सामने ला सके। इसके अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में रुचि लेने वाले शोधार्थियों के लिए भी पर्याप्त समर्थन दिए जाने का प्रयत्न हो सके।

विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य हिन्दी भाषा को अध्ययन, प्रशिक्षण, ज्ञान की वृद्धि और प्रसार के लिए तथा विज्ञान साहित्य, कला और अन्य विधाओं में उच्चस्तरीय गवेषणा के लिए शिक्षण का माध्यम बनाना है। उपरोक्त उद्देश्य की व्यापकता को प्रभावित किए बिना, विश्वविद्यालय के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे:-

१ - विज्ञान, साहित्य, संस्कृति, कला, दर्शन और अन्य विधाओं के अध्ययन और गवेषणा को प्रोन्नत करना, संकलित करना और संरक्षित करना।
२ - हिन्दी भाषा में शिक्षा और ज्ञान को प्रोन्नत करना और उसका प्रसार करना और इस प्रयोजन के लिए अन्य भाषाओं से अनुवाद करना, प्रकाशन, उद्देश्य और दूरस्थ शिक्षा का उपयोग, सूचना प्रौद्योगिकी और रोजगारकौशल का उपयोग संचालित करना।
३ - हिन्दी भाषा के ज्ञान को प्रोन्नत करने के लिए अभिभाषणों, सेमीनारों, परिसंवादों, अधिवेशनों का आयोजन करना।
४ - विभिन्न विधाओं में शिक्षण तथा प्रशिक्षण को प्रोन्नत करना, जैसा कि विश्वविद्यालय ठीक समझे और गवेषणा कार्य किए जाने का इंतजाम करना।
५ - सभी धर्मों और मुख्य प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों के अध्ययन तथा गवेषणा कार्य को प्रोत्साहित करना।
६ - परीक्षा संचालित करना और मानद उपाधियाँ और अन्य विशिष्टियाँ प्रदान करना।
७ - ऐसे समस्त कार्य करना, जो विश्वविद्यालय के समस्त या किन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने में अनुषांगिक, आवश्यक या सहायक हों।

abvhvप्रत्येक विश्वविद्यालय अथवा संस्था की अपनी पहचान उसकी कुलमुद्रा (लोगो) से होती है। अतएव अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल में 23 जनवरी, 2013 को ‘लोगो समिति’ (विश्वविद्यालय कुलमुद्रा) की बैठक कार्य परिषद् के सदस्य डॉ.गोविन्द शर्मा के संयोजकत्व में आयोजित हुई और उसमें उपस्थित समिति के सदस्यों ने डॉ.सुरेन्द्र भटनागर एवं डॉ.एल.एन. भावसार द्वारा प्रस्तुत कुलमुद्रा एवं ध्येयवाक्यों को सर्वसम्मति से स्वीकृति दी। अतः इस कुलमुद्रा में आकृति, ध्येयवाक्य एवं रंग तीन विशिष्ट आयाम परिलक्षित हैं।

आकृति रूप कुलमुद्रा के रेखांकन में एक नागचक्र है जो अपनी पूछ और मुँह से जुड़ा है। यह वैदिक अदिति का प्रतीक है जो अपनी सर्जन सक्रियता के लिए ऊर्जा स्वयं ही अंतस् एवं आंतरिक साधनों से प्राप्त करती है। इस प्रकार यह नागमुद्रा आत्मभरित स्वयं-व्यवस्था या तंत्र का प्रतीक है। यह प्रतीक हमें निरन्तर संदेश एवं प्रेरणा देती है और विश्वविद्यालय का यह प्रयत्न होगा कि यह अपने विकसित रूप में स्वावलंबन तथा स्वायत्तता अर्जित कर सके।

इस कुलमुद्रा में नागचक्र के अन्दर की आकृति ‘हिं’ लिखित है जिसकी निर्मिति हकार महाप्राण से हुई है। ‘हं’ तंत्र में आकाश बीज है और आकाश सृष्टि का कारण है। यहाँ हिंकार वाणी और संगीत का बीजस्वर है। सभी राग ‘हिं’ के मंद उच्चारण से प्रारम्भ होते हैं। अतः अभिज्ञात है कि हिंदी का प्रथमाक्षर ‘हिं’ से प्रारंभ होता है। इसी वर्ण को यहाँ मुद्रा के केन्द्र में सरस्वती के आकार में रेखांकित किया गया है। हिंकार रूप में यह नृत्यरत सरस्वती का प्रतीक है। माँ वीणावादिनी विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। अतएव सरस्वती नित्य-नए ज्ञान के अर्जन और प्रकाश का प्रतीक है और हिंदी का रूप स्वयं माँ सरस्वती का ही स्वरूप मान्य है।

इस कुलमुद्रा में अंकित विश्वविद्यालय का ध्येयवाक्य ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’ मंत्र सनातन धर्म एवं राष्ट्र के पवित्र-ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता से उद्धृत है। कुलमुद्रा की पार्श्वभूमि में केसरिया रंग के साथ पट्टिका के ऊपर स्थापना वर्ष- 2011 (ई.) अंकित है। केसरिया रंग राष्ट्रीय सनातन भगवाध्वज का प्रतीक, अग्निहोत्र की ज्वाला तथा राष्ट्र के प्रति त्याग व समर्पण की भावना अर्थात प्रेरणा देने वाला है। संकेतित वर्षांक अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना का है जिस वर्ष म.प्र. शासन के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान के सतत प्रयास से विश्व के समस्त ज्ञानानुशासनों का हिंदी माध्यम से शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोध कराने वाला अप्रतिम विश्वविद्यालय स्थापित हुआ है।

 

मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित प्रदेश का प्रथम विश्वविद्यालय; जहाँ कला, समाजविज्ञान, विज्ञान, वाणिज्य, अभियांत्रिकी प्रबंधन, चिकित्सा, विधि, कृषि आदि समस्त विषयों का ज्ञान हिंदी माध्यम से प्रदान करना।

  • ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण करना, जो स्वरोजगार अपनाकर नौकरी करने के लिए नहीं; बल्कि नौकरी देने लायक बने।
  • विद्यार्थियों में मूल्य आधारित व्यावसायिकता की सोच विकसित करना।
  • प्रत्येक विषय में भारतीय ज्ञान परंपरा एवं आधुनिक ज्ञान का समन्वय करते हुए छात्रों की सोच भारत केन्द्रित विकसित करना।
  • सभी छात्रों को तनाव-प्रबंधन हेतु योग प्रशिक्षण देना।
  • सभी विद्यार्थियों को संगणक प्रशिक्षण दक्षता प्रदान करना।
  • सभी विद्यार्थियों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व का बोध विकसित करना।
  • नियमित स्नातक एवं स्नात्कोत्तर पाठ्यक्रमों के साथ अंशकालीन प्रशिक्षण, प्रमाणपत्र एवं पत्रोपाधि पाठ्यक्रमों की सुविधा।
  • शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोध पाठ्यक्रमों में कोई आयु सीमा नहीं।
  • सभी ज्ञान अनुशासनों में विद्यानिधि (एम.फिल.), विद्यावारिधि (पी-एच.डी.) एवं विद्यावाचस्पति (डी.लिट., डी.एससी., एल.एल.डी.) शोध उपाधि कार्यक्रम भी हिंदी माध्यम से कराया जाना।
  • विद्यार्थियों को हिंदी भाषा के साथ संस्कृत, एक प्रांतीय भाषा तथा एक विदेशी भाषा (अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि) के ज्ञान की सुविधा प्रदान करना।
  • सामान्य रूप से देश में उपलब्ध संस्कृत, प्राकृत, पालि एवं अन्य प्रांतीय भाषाओं के साहित्य को तथा विशेष रूप से विश्व की अन्य भाषाओं में उपलब्ध श्रेष्ठ आधुनिक ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों की पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद करना।

हम अपने आपको एक ऐसे भारत राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं जो समय से पहले सोचता हो और आत्मसम्मान के साथ विश्व के राष्ट्रों की बिरादरी में अपनी भूमिका का निर्वाह करता हो। हम सम्भावनाओं की तलाश करेंगे और नई सम्भावनाओं का निर्माण करेंगे। यह एक भगीरथ प्रयत्न है, पर हम इसे अपनी क्षमता से पूरा करेंगे। हम एक ऐसा शिक्षातंत्र रचना चाहते हैं जो अपने जनसमूहों की आवश्यकताओं के अनुकूल तकनीक का निर्माण करे और ऐसा न हो जो विश्व की महाशक्तियों के लिए केवल तकनीकीतंत्री तैयार करे।

अटल बिहारी वाजपेयी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व

माननीय अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म २५ दिसम्बर १९२४ को उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर शिंदे की छावनी, ग्वालियर, मध्यप्रदेश में हुआ। माननीय अटल जी की स्नातक तक की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज वर्तमान में लक्ष्मीबाई महाविद्यालय में हुई। कानपुर के डी. ए. वी. कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर रहकर एल. एल. बी. का अध्ययन प्रारम्भ किया । जिसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा के साथ सामाजिक कार्य में जुट गए । आप राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में छात्र जीवन से ही भाग लेते रहे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसी पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। एक कुशल एवं सशक्त सम्पादक के रूप में माननीय अटल जी की प्रतिभा सर्वमान्य एवं सर्वव्यापी प्रसिद्ध हुई। माननीय अटल जी में कवित्व के गुण वंशानुगत प्राप्त हुए। वे हिन्दी के सिद्ध कवि के रूप में प्रख्यात हैं। " मेरी इक्यावन कविताएँ " अटल जी का प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। राजनीति के साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता उनकी कविताओं में प्रकट होती रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पाई ।

अटल जी का राजनैतिक जीवन भारतीय जनसंघ की स्थापना से प्रारम्भ होता है। सन् १९६८ से १९७३ तक वे इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन् १९५७ में बलरामपुर, उत्तरप्रदेश से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर प्रथम बार लोकसभा में पहुँचे। १९५७ से १९७७ तक जनसंघ संसदीय दल के नेता रहे। उन्होंने १९७७ से लेकर १९७९ तक भारतीय विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। अटल जी पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया। लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत संघ के ग्यारहवें प्रधानमंत्री के रूप में १६ मई, १९९६ में देश की बागडोर संभाली।

अटल जी ने गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में पाँच वर्षों का कार्यकाल पूर्ण किया। अटल जी ने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था और उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। एक ओजस्वी वक्ता के रूप में परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की नाराजगी से बिना विचलित हुए उन्होंने अग्नि-२ और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए साहसिक कदम भी उठाए। इनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा गुण उनकी सरलता है जिससे उनके जीवन में कहीं भी कोई व्यक्तिगत विरोधाभास नहीं दिखता। मित्रों के साथ विरोधियों में भी अटल जी समान रूप से लोकप्रिय हैं।

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