दृष्टिकोण एवं लक्ष्य
विश्वविद्यालय एक ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण करना चाहता है जो समग्र व्यक्तित्व के विकास के साथ रोजगार-कौशल व चारित्रिक-दृष्टि से विश्वस्तरीय हो। विश्वविद्यालय ऐसी शैक्षिक-व्यवस्था का सृजन करना चाहता है जो भारतीय ज्ञान परम्परा तथा आधुनिक ज्ञान में समन्वय करते हुए छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में ऐसी सोच विकसित कर सके जो भारत केन्द्रित होकर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण को प्राथमिकता देने में समर्थ हो।
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय देश में अपने ही प्रकार का एक विशेष विश्वविद्यालय है। इसकी विशेषता इस प्रकार से परिलक्षित होती है कि यह कला, समाज विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी, विज्ञान, चिकित्सा, अभियांत्रिकी, विधि, शिक्षा एवं अन्य आधुनिक दृष्टिकोण के पाठ्यक्रमों का संचालन हिंदी भाषा के ही माध्यम से करेगा। यह पहल निश्चय ही सम्पूर्ण हिंदी प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।
यह भारत सहित सम्पूर्ण विश्व का पहला विश्वविद्यालय है, जो ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं के शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रकाश-विस्तार तथा राष्ट्रीय लोकव्यवहार को हिंदी भाषा में संभव तथा सम्पन्न करने के लिए संकल्पित है। इसीलिए इसका दायित्व जहाँ युग-प्रवर्तक का है, वहीं दायित्व की गहनता-गम्भीरता तथा व्यापकता के लिए अपेक्षित विराट-संसाधन, वैश्विक-सहयोग द्वारा ही संभव है, जो कि राष्ट्रीय शासन के स्तर पर पहल द्वारा ही हो सकेगा। अभी तो मध्यप्रदेश शासन ने अपने स्तर पर इस अनन्य विश्वविद्यालय की स्थापना की पहल की है। यह विश्वविद्यालय समग्र-दृष्टि के अनुरूप शनैः-शनैः विकसित होगा।
इसकी सफलता से राष्ट्र की कर्त्तव्यनिष्ठ समस्त सरकारें प्रेरणा लेंगी और ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं में भारतीय भाषाओं के माध्यम से उच्चतम शिक्षा प्रदान करने का कर्त्तव्य निभाएंगी, यह विश्वास है। हिंदी विश्वविद्यालय की परिकल्पना ऐसे विश्वस्तरीय मानकों के निर्माण करने की है जिनके आधार पर हमारे शिक्षकों में भी गुणात्मक अध्ययन-अध्यापन एवं शोध की क्षमता में निरंतर वृद्धि हो सके। यहाँ शिक्षण और प्रशिक्षण की ऐसी प्रविधियों की संरचना हो, जिससे गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर व्यावहारिक निपुणताओं को आगे बढ़ाया जा सके तथा योजनाबद्ध शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रदर्शन की अत्याधुनिक प्रविधियों, संग्रहण, सर्वेक्षण, अभिलेखीकरण, श्रेष्ठ-भाषाविदों के सान्निध्य एवं सहयोग से मार्गदर्शन कर सकें। परंपरागत एवं आधुनिक ज्ञान का पुस्तकालय इस तरह से विकसित हो कि भाषा की शास्त्रीयता की रक्षा के साथ, दृश्य तथा श्रव्य सामग्री विकसित की जा सकें। हिंदी सहित समस्त भारतीय भाषाओं को उनकी प्रामाणिकता और बौद्धिक क्षमता तथा उसमें निहित आध्यात्मिक बोध के जरिए एक सूत्र में इस तरह पिरोया जाए कि विरासत का ज्ञान विद्यार्थियों को हो सके और उसमें लगातार प्रयोग तथा परिशोध का काम भी होता रहे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान इस तरह बने कि जहाँ सभी भाषाओं के श्रेष्ठ ज्ञान को हिंदी भाषा में अनुवादित कर उसका प्रचार-प्रसार किया जा सके।
विश्वविद्यालय एक ऐसी अनूठी पहल के रूप में देश-विदेश के सामने आए, जिससे भारत की अनोखी सांस्कृतिक विरासत और लगातार हजारों वर्षों से संपोषित एवं सृजनरत संस्थाओं को पुनर्जीवित कर उनके मूलपाठ को वर्तमान संदर्भों में दुनिया के सामने ला सके। इसके अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में रुचि लेने वाले शोधार्थियों के लिए भी पर्याप्त समर्थन दिए जाने का प्रयत्न हो सके।